रविवार, 25 मार्च 2012

नैतिकता के लिए नौकरी की चिंता छोड़नी होगी ....





डॉ शकुंतला राव अमर्त्य सेन की पुस्तक द आईडिया ऑफ़ जस्टिस में वर्णित न्याय और नीति शब्दों पर आज की मीडिया की प्रासंगिकता पर बात की।उन्होंने भी न्याय को सर्वसुलभ और समान रूप में लागू किये जाने हेतु मीडिया की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया।अगर हम न्याय को ज़रूरी मानते हैं तो मीडिया के वैश्वीकरण में मीडिया की नैतिकता,लोकतंत्र और न्याय के बीच की समझ को शामिल किया जाना चाहिए।






जिस लोकतंत्र में पत्रकारिता है वहां पत्रकारिता सामाजिक न्याय को सम्यक बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है।मीडिया लोगों को सूचित करके,मुद्दों की जांच पड़ताल करके,विश्लेषण करके,लोगों को लामबंद करके समाज की सेवा कर सकता है।

वैश्वीकरण के दौर में विश्व दूसरा स्थान हो चुका है।लोग आज स्थानीय यथार्थ में रहने लगे हैं।व्यक्तियों,वस्तुओं और विचारों का खुला प्रवाह हो रहा है।और कई तरह के अंतर्विरोधों के बीच जीते लोग स्थापनाओं को चुनौती दे रहे हैं।इन चुनौतियों और बदलावों के मूल में मीडिया ही है।

मीडिया में महिलाओं की स्तिथी और उनकी भूमिका पर  प्रोफ़ेसर गीता बामजई ने अपनी बात रखी।उन्होंने महिलाओं की भूमिका में अपेक्षा अनुरूप कोई बदलाव न होने की बात कही।मीडिया में आज भी ज्यादातर महिलाओं को फ़्लावर शो के लिए ही रखा जाता है।महत्वपूर्ण और निर्णय ले सकने वाले पदों में भी महिलाओं की बेहद कम जगह मिली है।

महिलाओं पर बनाने वाले कार्यक्रमों में भी कंटेंट पर ज्यादा काम नहीं किया जाता है।ज्यादातर महिलाओं को सुन्दरता के प्रतीक के रूप में ही पेश किया जाता है।महिलाओं को आज भी पीड़ित,शोषित की तरह ही दिखाया जाता है।सनसनी और क्राइम के कार्यक्रमों में ही महिलाओं को दिखाया जाता है।पिछले 20 वर्षों में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों के चलाये जाने के बाद भी महिलाओं की स्तिथी में खास बदलाव नहीं आ पाए हैं।  

महिलाओं की मनोवृत्ति में भी कई बदलाव आये हैं।महिलाएं आज ज़्यादा मज़बूत,ज़्यादा सुन्दर और ज़्यादा तीखे तेवरों के साथ पेश होने लगी हैं।फिर भी मीडिया को महिलाओं की बेहतरी में कई सकारात्मक काम करने होंगे।

सत्र की आख़िरी वक्ता सुमेधा धनी थी।उन्होंने मीडिया की नैतिकता और सामाजिक न्याय पर अपनी बात रखी।सुमेधा महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक में जनसंचार की असिस्टेंस प्रोफ़ेसर हैं।
भारतीय मीडिया में भी भारतीय समाज की तरह जातीय असंतुलन है।2006 में  सी एस डी एस  के द्वारा कराये गए सर्वे में पाया गया कि भारतीय मीडिया में 70 फीसदी संपादक सवर्ण हैं।ये लोग उस जाति समूह से आते हैं जो भारत की आबादी का महज़ 8 फीसदी हैं। 

आज भी मीडिया में कई तरह के जातीय भेदभावों को लेकर खबरें आती रहती हैं।दलितों को कई सार्वजनिक स्थानों पर बेईज्ज़त किया जाता है।दलित परिवार के बच्चों को स्कूलों में भी अलग से बैठाया जाता है। चूँकि मीडिया का आतंरिक स्वरुप किसी वर्ग विशेष की तरफ झुका हुआ है।ऐसे में उसी मीडिया से सामाजिक न्याय कि उम्मीद नहीं की जा सकती।

राउण्डटेबल के आठवें और अंतिम सत्र में वक्ता जाने माने पत्रकार परन्जॉय गुहा ठाकुरता थे।उन्होंने अपने पेपर आतंकवाद और पत्रकारिता मुंबई हमले पर केस स्टडी पर सम्मिलित किये।पर उन्होंने अपना वक्तव्य मीडिया के मूल्यबोध और मूल्यों से भटकाव के कारणों के इर्द-गिर्द रखा।
पेड़ न्यूज़ की घटना के बाद से मीडिया में हो रही नैतिकता की बहस पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि पत्रकार को अपनी लक्ष्मण रेखा खुद ही तय करनी होगी।प्राइवेट ट्रीटी के सन्दर्भ में सेबी के दिशानिर्देशों का अभी तक भी हो रहे उलंघन पर भी उन्होंने खुल कर बोला।पेड़ न्यूज़ के मामले में चुनाव आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश की विधायक उर्मिलेश यादव को निलंबित किये जाने को उन्होंने  अभी भी मीडिया के प्रति आशावादी होने का संकेत माना।

ऑडिटोरियम में बैठे युवा मीडिया विद्यार्थियों की इशारा करते हुए उन्होंने युवा पत्रकारों के मीडिया में आने को सकारात्मक सन्देश माना।युवाओं के आने से मीडिया में नैतिकता मज़बूत होगी।इसी मुद्दे पर सवाल ज़वाबों का रोचक सिलसिला चला।हॉल में बैठे कई विधार्थियों ने मीडिया की नैतिकता पर कई सवाल किये।
सत्र की अध्यक्ष डॉ शकुंतला राव ने अध्यक्षीय टिप्पणी की।मोडरेटर की भूमिका में प्रोफ़ेसर श्रीवास्तव ने कहा कि आप नैतिकता की कसौटी में खरा उतरना चाहते हैं तो आपको पत्रकार के रूप में नौकरी की चिंता छोड़नी होगी और अपना त्यागपत्र हमेशा तैयार रखना चाहिए।प्रोफ़ेसर श्रीवास्तव ने सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया।और फोटो सेशन के बाद 3 दिवसीय राउण्डटेबल का समापन हुआ।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें