शनिवार, 24 मार्च 2012

व्यावसायिक आकांक्षाओं के चलते वैश्विक मीडिया की नैतिकता का पतन


तीसरा वैश्विक मीडिया एथिक्स राउण्डटेबल इस बार आई आई एम सी में आयोजित किया गया।इसमें भारत सहित विदेशों से भी कई प्रतिभागियों ने भाग लिया।यह राउण्डटेबल 1 नवम्बर से 3 नवम्बर तक चला।इससे पहले इस राउण्डटेबल का आयोजन दक्षिण अफ्रीका और दुबई में किया जा चुका है।

  संस्थान के महानिदेशक श्री सुनीत टंडन के स्वागत भाषण के साथ राउण्डटेबल  की शुरुआत हुई।डॉ शकुंतला राव ने राउण्डटेबल के बारे में विस्तार से बताया।डॉ राव स्टेट यूनिवर्सिटी न्यूयार्क में प्रोफ़ेसर हैं।राउण्डटेबल का मुख्य संबोधन मेल टुडे के संपादक भारत भूषण ने दिया।भारत भूषण ने मीडिया में फ़ैली गंध पर विस्तार से बात की।उन्होंने भारतीय मीडिया के सन्दर्भ में पेड न्यूज़ की व्यापकता को समझाया।

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आज का भारतीय मीडिया नैतिकता के संकट से गुजर रहा है।यह संकट सिर्फ मीडिया की वजह से नहीं है।इस संकट का मुख्य कारण नेता,कारपोरेट और संपादकों के बीच चल रहा नेक्सस है।मीडिया घरानों की बढ़ती व्यावसायिक आकांक्षाओं के चलते भी मीडिया का अपभ्रंश हुआ है।मीडिया घराने अपना दायरा बढाने के लिए मीडिया के इतर भी कई और क्षेत्रो में अपना विस्तार कर रहे है। व्यावसायिक हितों के चलते नैतिकता से समझौता कर रहे हैं।मीडिया का हो रहा विस्तार सम्पादकीय परिघटना नहीं है बल्कि यह एक बाजारी परिघटना है।जिसके चलते ज्यादातर मीडिया घराने सेज,डैमों के निर्माण और उदारवाद कि एकपक्षीय तस्वीर सामने लाते हैं।

नैतिकता पर बड़ी चिन्ता की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि संपादक की भूमिका का सीमित होना और बढ़ती  वैचारिक समानता आज की बड़ी परेशानियाँ हैं।मीडिया को चला रहे लोग आज स्टेट के साथ वैचारिक दोस्ताना बनाकर बैठे हैं।जिसके चलते कई बातों पर सही राय नहीं बन पाती है।

बाद में उन्होंने प्रतिभागियों के प्रश्नों का भी उत्तर दिया।

भारत भूषण के संबोधन के बाद सत्र के अध्यक्ष क्लिफर्ड क्रिस्टिन  ने टिप्पणी की। उन्होंने बहस को नए आयामों के साथ वैश्विक फलक पर लिया और अपनी बात रखी।उन्होंने मीडिया को अधिक ज़िम्मेदार होने की बात कही।मीडिया का समाज को बनाने में और उसे एक दिशा  देने में बहुत बड़ा योगदान होता है।किसी भी लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने में वहां के मीडिया की महती भूमिका होती है।

सत्र के सह प्रस्तुतकर्ता उदय सहाय ने ने अपनी बात रखते हुए कहा की मीडिया की नैतिकता के पारंपरिक सोपान को छोड़ कर भी हमें अलग बात करनी होगी।उन्होंने कहा कि हर मीडिया संस्थान को अपनी सीमाओं को साफ़ तौर पर परिभाषित करने की ज़रूरत है।
सत्र के अंत में ओ एस डी जयदीप भटनागर ने सभी का धन्यवाद किया और सत्र समाप्त की घोषणा की।

राउण्डटेबल का दूसरा सत्र 11 ; 45 से 1 ; 15 तक का था।इस सत्र कि अध्यक्षता प्रोफेसर शकुंतला राव ने की।सत्र के पहले वक्ता के तौर पर प्रोफेसर क्लिफर्ड क्रिस्टिन ने वैश्विक न्याय और नागरिक समाज पर अपने विचार रखे।उन्होंने कहा कि न्याय का मतलब है कि समाज के लोगों को वो मिले जिसका उन्हें किसी संस्था से पाने का अधिकार है।जब अधिकारों और प्रक्रियाओं का समान वितरण किया जाये और गलतियों को सुधारने के लिए ज़रूरी कदम उठाये जाएँ तो समझा जाना चाहिए कि न्याय हो रहा है।
न्याय सबसे पहले नागरिक समाज से जुड़ा होता है। नागरिक समाज भारत में रोज़मर्रा कि ज़िंदगी से जुड़ा है।नागरिक समाज का काम भारत में आज़ादी के बाद से सरकार द्वारा छोड़े गए कामों को करना रहा है।जैसे स्वास्थ्य का मुद्दा।भारत में स्वास्थ्य पर सरकार से ज्यादा एन जी ओ काम करते हैं।कुष्ट को लेकर बाबा आमटे द्वारा चलाये गए स्वास्थ्य केंद्र भी इसका एक उदहारण हैं।

सत्र के दूसरे प्रवक्ता विपुल मुदगल थे।डॉ मुदगल सी एस डी एड से जुड़े हैं।उन्होंने नैतिक कवरेज और लोकतान्त्रिक पब्लिक स्पीयर  विषय पर अपने पेपर सम्मिलित किये।उन्होंने बड़ा सवाल उठाया कि क्या अनैतिक ख़बर को किसी संदेहपरक दवा या मिलावटी सामान की ही तरह दण्डित किया जाना चाहिए?

उन्होंने कहा कि लोगों कि मीडिया पर निर्भरता बढ़ रही है।पर मीडिया घराने या तो पेड़ न्यूज़ के चलते या प्राइवेट ट्रीटी के चलते सही खबरें नहीं दिखा रहे हैं।पाठक को समाचार और विज्ञापन में फर्क करना मुश्किल हो गया है।कई पत्रकार अपनी नौकरी का जोखिम उठा कर भी व्यवस्था के खिलाफ ख़बरें ला रहे हैं।जो कई बार उनके संस्थान के विचार के भी खिलाफ होता है।फिर भी पहले जैसी पत्रकारिता अब नहीं हो रही है।उन्होंने कहा कि बहुलतावादी लोकतान्त्रिक समाज के निर्माण के लिए मीडिया को ज़्यादा ज़िम्मेदार होना होगा।

सत्र के आख़िरी हिस्से में डॉक्युमेंट्री दिखाई गयी।जिसका नाम द ग्रेट कन्सपीरेसी था।इस  डॉक्युमेंट्री  में 9 /11 के पीछे कि हकीक़त दिखाई गयी थी।डॉक्युमेंट्री में मीडिया की भूमिका को दिखाया गया था।किस तरह से अमेरिका ने मीडिया के सहारे जनमत खड़ा किया और हमले को सबसे बड़ी आतंकवादी घटना के तौर पर पेश किया।

   



  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें