गुरुवार, 15 मार्च 2012

वैश्विक वित्‍तीय बाजारों में अस्थिरता पर नजर...

कमजोर वैश्विक आर्थिक संभावनाओं और अंतर्राष्‍ट्रीय वित्‍तीय बाजारों में अनिश्चिताओं के कारण बैंको और कॉर्पोरेट के लिए विदेशी धन की उपलब्‍धता और लागत की उपलब्‍धता पर ऋणात्‍मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। अंतर्राष्‍ट्रीय वित्‍तीय बाजारों, विशेष रूप से मुद्रा एवं इक्विटी ने वर्ष के दौरान दबाव में कार्य किया है। विश्‍व बाजार संकट से पूंजी आवक में बढ़ते हुए जोखिम निवारण और मंदी को बढ़ावा मिला है। जिसके परिणाम स्‍वरूप अगस्‍त-दिसंबर 2011 के दौरान मुद्रा संकट व्‍याप्‍त रहा। 


यद्‍यपि लिक्विडिटी की स्थिति कमजोर रही है। लेकिन प्रतिकारक कदमों ने इसे दूर करने में मदद की है। विश्‍व आर्थिक विकासों के अलावा बढ़ते हुए व्‍यापार असंतुलन, पूंजी आवक और घरेलू वृद्धि को प्रोत्‍साहित करने के प्रयासों की गति से भारतीय वित्‍तीय बाजारों में गतिविधियों के प्रभावित होने की संभावना है।


सर्वेक्षण में विशेष रूप से यूरों देशों में संप्रभुता जोखिम चिंताओं के बारे में इशारा करते हुए यह बताया गया है कि इन्‍होंने वर्ष के अधिकांश भाग में वित्‍तीय बाजारों को प्रभावित किया है। सर्वेक्षण में स्थिरता के उच्‍च से सामान्‍य स्तरों की विधि द्वारा भारत और अन्‍य अर्थव्‍यवस्‍थाओं में फैली ग्रीस संप्रभुता ऋण समस्‍या की ओर इशारा किया गया है। बैंक प्रभुता वाली वित्‍तीय प्रणाली पर जोर दिया गया है कि यह संस्‍थान संकट पूर्ण से समग्र वित्‍तीय स्थिरता तक का दबाव हटाने की योग्‍यता रखता है। सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि भारतीय बैंक बिना किसी प्रमुख अवरोध के मजबूती से खड़े रहे और वित्‍तीय अवसंरचना लगातार कार्य करती रही। सर्वेक्षण में यह चेतावनी दी गई है कि वित्‍तीय प्रणाली के अधिक वैश्विकरण, विनियमन, समेकन और विविधता से बैंकिंग व्‍यापार अधिक जटिल और जोखिम पूर्ण हो सकता है। जोखिम लिक्विडिटी प्रबंधन के साथ-साथ कौशल वृद्धि जैसे मुद्दे अधिक महत्‍वपूर्ण माने गए हैं। 

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