गुरुवार, 15 मार्च 2012

आर्थिक समीक्षा 2011-12





वर्ष 2011-12 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 6.9 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान किया गया है, जो औद्योगिक क्षेत्र में मंद विकास के कारण है। इसमें न केवल पिछले दो वर्षों की तुलना में मंदी का संकेत दिया गया है जब अर्थव्यस्था में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, बल्कि वर्ष 2008-09 के दौरान आर्थिक मंदी के समय 6.7 प्रतिशत विकास दर को छोड़कर वर्ष 2003 से लेकर 2011 तक की तुलना में विकास दर कम होने का संकेत दिया गया है। वित्त मंत्री श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा लोकसभा में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2011-12 में वर्ष 2012-13 में सकल घरेलू उत्पाद में 7.6 प्रतिशत और वर्ष 2013-14 में 8.6 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। कृषि और सेवा क्षेत्र के निरन्तर बेहतर कार्यनिष्पादन के साथ अपेक्षाकृत अर्थव्यवस्था में कम विकास का कारण मुख्य रूप से कमजोर औद्योगिक विकास को ही बताया गया है। सेवा क्षेत्र का निष्पादन निरन्तर अग्रणी रहा है और सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2010-11 में सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 58 प्रतिशत से 9.4 प्रतिशत बढ़कर 2011-12 में 59 प्रतिशत हो गया। इसी प्रकार, कृषि और संबंधित क्षेत्रों में 250.42 मिलियन टन से भी अधिक खाद्यान उत्पादन के साथ वर्ष 2011-12 में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान है। यह अनुमान कुछ राज्यों में चावल के उत्पादन में वृद्धि होने के आधार पर लगाया गया है। औद्योगिक क्षेत्र का उत्पादन कमजोर रहा है जिसने सकल घऱेलू उत्पाद में 27 प्रतिशत योगदान किया। अप्रैल-दिसंबर 2011 के दौरान कुल मिलाकर वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत हो गयी जबकि विगत वर्ष की इसी अवधि के दौरान यह 8.3 प्रतिशत थी।

सर्वेक्षण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि थोक मूल्य सूचकांक द्वारा मापी गयी मंहगाई दर मौजूदा वित्त वर्ष की अधिकांश अवधि के दौरान अधिक थी, हालांकि वर्ष के अंत तक मूल्य वृद्धि में स्पष्ट तौर पर गिरावट हुई है। विशेष रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में महत्वपूर्ण कमी हुई है, जो गैर-खाद्य विनिर्माण उत्पादों के द्वारा बड़ी हुई थोक मूल्य सूचकांक की बढ़ी हुई दर के बावजूद है। मंहगाई दर के नियंत्रण के लिए और मंहगाई के अनुमानों को रोकने के उद्देश्य से भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति को सख्त बनाया था। चालू वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था में निवेश की वृद्धि दर में काफी गिरावट दर्ज की गयी है। वर्ष के दौरान ब्याज दरों में काफी वृद्धि देखी गयी जिसके कारण ऋणों की लागत अधिक हो गयी।

किन्तु 6.9 प्रतिशत की कम विकास दर के बावजूद भी भारत विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है क्योंकि तेजी से बढ़ती और उभरती अर्थव्यवस्थाओं सहित सभी प्रमुख देश आर्थिक मंदी झेल रहे हैं। कई प्रकार वैश्विक घटकों और घरेलू कारणों से भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट हो रही है। इनमें मौद्रिक नीति का सख्त होना एक कारण है जिसके फलस्वरूप मंहगाई दर बढ़ना कायम है और निवेश तथा औद्योगिक गतिविधि मंद हो रही है। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इस स्थिति में विकास और मूल्य स्थिरता का प्ररिदृश्य उम्मीदों से परिपूर्ण दिखाई पड़ता है। आर्थिक सर्वेक्षण में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2012-13 में 7.6 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान किया है और उसके बाद इससे भी अधिक वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।

आर्थिक सर्वेक्षण में यह संकेत दिया गया है कि बचत खातों पर ब्याज दरों के सकारात्मक विनियमन के कारण वित्तीय बचतों में वृद्धि होने और मौद्रिक नीति के प्रसार में सुधार होने मदद मिलेगी। अन्य प्रमुख क्षेत्रों में घरेलू वित्तीय बाजारो की गहराई, विशेषकर कार्पोरेट बोंड बाजार और विदेश से दीर्घकालिक प्रभावों को आकर्षित करना इनमें शामिल है। भारत के विदेश व्यापार का निष्पादन विकास के एक मुख्य ईंजन के रूप में कायम रहेगा।

सर्वेक्षण में इस बात को महत्व दिया गया है कि सतत विकास और जलवायु परिवर्तन वैश्विक सरोकारों का प्रमुख क्षेत्र बन गया है और भारत भी समान रूप से इसके लिए चिंतित है तथा वैश्विक वार्ताओं में अपनी सकरात्मक भूमिका निभा रहा है। भविष्य में जलवायु परिवर्तन की समस्याएं बढ़ेंगी और ऊर्जा पर आधारित अपने विकास में भारत अपने वाजिब हिस्से से भी अधिक काम कर रहा है। भारत अब वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ और भी अधिक निकटता के साथ जुड़ गया है क्योंकि जिंसों और सेवाओं के सकल घरेलू उत्पाद के प्रति व्यापार में इसका हिस्सा 1990 से लेकर 2010 के बीच तीन गुणा हो गया है। 

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