शनिवार, 31 मार्च 2012

ईरान को अलग -थलग करमन ही अमेरिका का उद्देश्य

 ईरान के खिलाफ और सख्ती का संकल्प व्यक्त करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि चीन और भारत जैसे देशों के समक्ष ईरानी कच्चे तेल पर निर्भरता घटाने के लिए विश्व बाजार में तेल की कमी नहीं हैं।


ओबामा ने कहा, ‘मैं खुद इस स्थिति पर कड़ी नजर रखूंगा कि ईरान से पेट्रोलियम और पेट्रोलियम पदार्थों की खरीदारी में कमी होने के बाद उत्पन्न स्थिति में भी बाजार में समन्वय बना रहे।’ ओबामा ने कहा, ‘मैं इस बात के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हूं कि ईरान के अलावा अन्य देशों से पेट्रोलियम और पेट्रोलियम पदार्थों की पर्याप्त आपूर्ति हो ताकि ईरान से विदेशी वित्तीय संस्थानों अथवा उनके जरिए खरीदे जाने वाले पेट्रोलियम और पेट्रोलियम पदार्थों की मात्रा में स्पष्ट तौर पर गिरावट लाई जा सके।’

अमेरिका की संसद में इस प्रकार के कानून को मंजूरी दी गई है, जिसमें अमेरिका ने यह प्रतिबद्धता जताई है। इसका उद्देश्य शुरुआती तौर पर ईरान को तेल से होने वाली आमदनी में कमी लाकर उसे महत्वकांक्षी परमाणु कार्यक्रम से हटने के लिए विवश करना है। भारत, चीन, तुर्की और दक्षिण कोरिया समेत 12 देशों को ईरानी कच्चे तेल के आयात से निर्भरता कम करने के लिए जून अंत तक का समय दिया है।
अमेरिका ने पहले ही 11 देशों को इस तरह के प्रतिबंधों से बाहर रखा है, जल्द ही कुछ और देशों को भी प्रतिबंध से छूट दे दी जाएगी। व्हाइट हाउस प्रेस सचिव जे कार्नी ने कहा कि ईरानी तेल पर से आयात में कमी लाने के लिए ईरान के अलावा दूसरे देशों द्वारा पर्याप्त तेल की आपूर्ति की जा रही है। ईरान से भारी मात्रा में तेल आयात करने वाले देश ईरान आयात से अपनी निर्भरता घटा सकते हैं।

20 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंचा व्यापार घाटा


आयात और निर्यात के बीच की खाई अब 20 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। वित्त वर्ष 2012 की तीसरी तिमाही में व्यापार घाटा बढ़कर जीडीपी के 4.3 फीसदी तक पहुंच गया है।

तीसरी तिमाही में व्यापार घाटे में दोगुने की बढ़त देखी गई है और ये बढ़कर 19.5 अरब डॉलर के पार चला गया है। पिछले साल इसी अवधि में व्यापार घाटा करीब 10 अरब डॉलर था। पिछले साल के मुकाबले इस साल तीसरी तिमाही में आयात में तो मामूली कमी आई है लेकिन एक्सपोर्ट बहुत तेजी से घटा है।


व्यापार घाटा बढ़ने से बैलेंस ऑफ पेमेंट की स्थिति भी बिगड़ गई है। आरबीआई से जारी एक बयान के मुताबिक व्यापार घाटा बढ़ने और विदेशी निवेश घटने से फॉरेक्स रिजर्व में दबाव देखने को मिला है। जानकारों के मुताबिक अगर हालात ऐसे ही रहे तो डॉलर के मुकाबले रुपये में और कमजोरी देखने को मिलेगी।

vanya mishra is new miss India

Image Loadingजालंधर की रहने वाली वन्या मिश्रा को शुक्रवार को पेंटालून फेमिना मिस इंडिया (पीएफएमआई) वर्ल्ड 2012 का ताज पहनाया गया। वन्या को यहां आयोजित एक समारोह में यह खिताब दिया गया। वह इस साल होने वाली वैश्विक सौंदर्य प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी।
चेन्नई की रोचेली मारिया राव को मिस इंडिया इंटरनेशनल का खिताब दिया गया है जबकि पुणे की प्राची मिश्रा को मिस इंडिया अर्थ का खिताब मिला है।

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

क्या रिपोर्टिंग के लिए भी लेना होगा अदालती आदेश.......

 एडीटर्स गिल्ड ने अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग के लिए दिशानिर्देश तय करने का विरोध किया है। एडीटर्स गिल्ड की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि अगर रिपोर्टिग पर कुछ समय के लिए भी रोक लगाई जाती है तो उससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है। एडीटर्स गिल्ड की ओर से ये दलीलें गुरुवार को अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग के लिए दिशानिर्देश तय करने पर चल रही सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष दी गई।
 एडीटर्स गिल्ड के वकील राजीव धवन ने प्रेस की स्वतंत्रता पर जोर देते हुए कहा कि संविधान में तीन 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 14 (कानून के समक्ष समानता) और 21 (जीवन का अधिकार) महत्वपूर्ण अनुच्छेद हैं। ये मौलिक अधिकार है और इनमें सबसे महत्वपूर्ण है अनुच्छेद 19 जो हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसी पर लोकतंत्र निर्भर है। अगर अनुच्छेद 19 को हटा दिया गया तो लोकतंत्र खतम हो जाएगा। धवन ने अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग पर कुछ समय के लिए भी रोक लगाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि कोर्ट, रिपोर्टिग के बारे में दिशानिर्देश नहीं तय कर सकता। सामान्य कानूनों के तहत अदालत के पास न्यायिक कार्यवाही के प्रकाशन को स्थगित करने की शक्ति नहीं है और कानून में अगर कोई रिक्ति है तो इसके आधार पर किसी व्यक्ति के अधिकारों पर रोक नहीं लगाई जा सकती। धवन ने कहा कि भारत के संविधान के दो भाग हैं एक राजनीतिक और दूसरा न्याय। राजनीतिक भाग की संरक्षक संसद है जबकि न्याय की संरक्षक अदालत है। उन्होंने कहा कि यह अदालत हमेशा से लोकतंत्र लागू करती रही है, इसीलिए अनुच्छेद 19 (1)(ए) महत्वपूर्ण है।


 पीठ ने धवन से पूछा, हम यह जानना चाहते हैं कि अगर किसी आरोपी को अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का हनन हो रहा है तो क्या हमें कार्यवाही का इंतजार करना चाहिए या हम अधिकारों के हनन का प्रथम चरण में ही समाधान कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह स्थगन के विचार पर बहस कर रही थी क्योंकि अदालत की कार्यवाहियों की रिपोर्टिग करने के लिए कोई कानून नहीं है और अगर कानून के माध्यम से स्थगन के अधिकार का ख्याल रखा जाता है तो दिशानिर्देश की जरूरत नहीं पड़ेगी। उल्लेखनीय है कि अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग के संबंध में कई वकीलों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर उचित दिशा-निर्देश जारी करने की गुजारिश की थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई शुरू की है। मीडिया के हलकों में इसको लेकर चिंता जताई जा रही है कि इससे मीडिया की स्वतंत्रता का हनन न हो जाए। 
                                       thanks to dainik jagran.....

विकास और पर्यावरण की बातें...... दुसरा भाग...


आज विज्ञान और तकनीक के माध्यम से इंसानी जीवन की बेहतरी के बहाने 



विकास का जो ताना-बाना बुना जा रहा है, दुर्भाग्य से उसका सबसे बुरा असर 


मानव सभ्यता की मेरुदंड प्रकृति पर ही पड़ रहा है। सूचना तकनीक के 


मौजूदा दौर में दुनिया ई-कचरे का ढेर बनती जा रही है। जो पर्यावरण को 


लंबे समय तक और गहरे तक प्रदूषित करने वाला है। यह ई-कचरा 


अक्षरणीय प्रदूषक है। लेकिन यह चूनौतियां ऐसी है जो केवल मौजूदा व्यवस्था 


के साथ नहीं जुड़ी है। मसलन क्या बाजार आधारित व्यवस्था खत्म होने से 


पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले ई-कचरे का निस्तारण हो जाएगा या यह 


पैदा ही नहीं होगा? यदि इससे निबटने के लिए हम मोबाइल या अन्य 


इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल बंद कर देंगे तो क्या पॉलीथीन या 


प्लास्टिक के अन्य कचरों की एक अन्य पर्यावरणीय समस्या खत्म हो 


जाएगी। पर्यावरण हितैषी कल्पना करते है कि प्लास्टिक का प्रयोग बंद हो 


जाए और फर्नीचर प्लास्टिक के बजाए लकडि़यों का बनाया जाए तो क्या ऐसे 


में वनों पर निर्भरता बढ़ नहीं जाएगी। यहीं पर मानवीय चेतना की भूमिका है 


जो मौजूदा व्यवस्था में भी और बाजार से इतर ढांचे में भी महत्वपूर्ण हो 


जाती है। 
अभी मानवीय चेतना बाजारवाद के प्रभाव मे है और इंसान एक उपभोक्ता और 


ग्राहक की तरह इस्तेमाल हो रहा है। विकास के संदर्भ में आर्थिक विकास 


जितना महत्वपूर्ण नहीं है उतना महत्वपूर्ण है मानव विकास। पृथ्वी पर 


मौजूद संसाधन सीमित है। ऐसे में बढ़ती जनसंख्या और उसके साथ जुड़ी 


उपभोक्ता दर भी एक बड़ी समस्या है। पृथ्वी एक ऐसा पात्र है जिसमें से हम 


निकाल तो सकते हैं लेकिन उसमें कुछ डाल नहीं सकते हैं। यानि उपलब्ध 


प्राकृतिक संसाधन अत्यधिक इस्तेमाल होने से समाप्त होने के कगार पर है। 


विकसित देशों और विकासशील देशों के बीच हो रही बहस ने जनसंख्या और 


Add caption
उपभोक्ता दर के बीच विरोधाभास को उजागर किया है। 




विकसित देश बडी जनसंख्या का हवाला देते हुए विकासशील देषों को पर्यावरण के प्रति पहली जिम्मेवारी लेने की बात कर रहे है वही विकासशील 

देश अधिक उपभोक्ता दर का हवाला देते हुए विकसित देशों से ज्यादा 

जिम्मेदारी उठाने की बात कर रहे है। सचाई तो यह है कि यदि दुनिया के 

लिए एक जैसी उपभोक्ता दर की कल्पना की जाती है तो यह पृथ्वी पर 

अत्यधिक दबाव डालने वाला होगा। दुनिया को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों और 

विज्ञान तथा तकनीक के नवाचार की तरफ अग्रसर होना होगा क्योंकि दुनिया 

विकास की गति से पीछे नहीं हट सकती है। पर्यावरणीय संकट की समस्या 

को सभी  छोटे-बडे़ देशों को समय रहते गंभीरता से लेना होगा और सुरक्षित 

पर्यावरण के मसले को विनाशकारी चुनौती के रूप में ईमानदारी से स्वीकारना 

होगा।...........

                    समाप्त......
         

विकास और पर्यावरण की बातें...... दुसरा भाग...


आज विज्ञान और तकनीक के माध्यम से इंसानी जीवन की बेहतरी के बहाने 



विकास का जो ताना-बाना बुना जा रहा है, दुर्भाग्य से उसका सबसे बुरा असर 


मानव सभ्यता की मेरुदंड प्रकृति पर ही पड़ रहा है। सूचना तकनीक के 


मौजूदा दौर में दुनिया ई-कचरे का ढेर बनती जा रही है। जो पर्यावरण को 


लंबे समय तक और गहरे तक प्रदूषित करने वाला है। यह ई-कचरा 


अक्षरणीय प्रदूषक है। लेकिन यह चूनौतियां ऐसी है जो केवल मौजूदा व्यवस्था 


के साथ नहीं जुड़ी है। मसलन क्या बाजार आधारित व्यवस्था खत्म होने से 


पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले ई-कचरे का निस्तारण हो जाएगा या यह 


पैदा ही नहीं होगा? यदि इससे निबटने के लिए हम मोबाइल या अन्य 


इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल बंद कर देंगे तो क्या पॉलीथीन या 


प्लास्टिक के अन्य कचरों की एक अन्य पर्यावरणीय समस्या खत्म हो 


जाएगी। पर्यावरण हितैषी कल्पना करते है कि प्लास्टिक का प्रयोग बंद हो 


जाए और फर्नीचर प्लास्टिक के बजाए लकडि़यों का बनाया जाए तो क्या ऐसे 


में वनों पर निर्भरता बढ़ नहीं जाएगी। यहीं पर मानवीय चेतना की भूमिका है 


जो मौजूदा व्यवस्था में भी और बाजार से इतर ढांचे में भी महत्वपूर्ण हो 


जाती है। 
अभी मानवीय चेतना बाजारवाद के प्रभाव मे है और इंसान एक उपभोक्ता और 


ग्राहक की तरह इस्तेमाल हो रहा है। विकास के संदर्भ में आर्थिक विकास 


जितना महत्वपूर्ण नहीं है उतना महत्वपूर्ण है मानव विकास। पृथ्वी पर 


मौजूद संसाधन सीमित है। ऐसे में बढ़ती जनसंख्या और उसके साथ जुड़ी 


उपभोक्ता दर भी एक बड़ी समस्या है। पृथ्वी एक ऐसा पात्र है जिसमें से हम 


निकाल तो सकते हैं लेकिन उसमें कुछ डाल नहीं सकते हैं। यानि उपलब्ध 


प्राकृतिक संसाधन अत्यधिक इस्तेमाल होने से समाप्त होने के कगार पर है। 


विकसित देशों और विकासशील देशों के बीच हो रही बहस ने जनसंख्या और 


Add caption
उपभोक्ता दर के बीच विरोधाभास को उजागर किया है। 



विकसित देश बडी जनसंख्या का हवाला देते हुए विकासशील देषों को पर्यावरण के प्रति पहली जिम्मेवारी लेने की बात कर रहे है वही विकासशील 

देश अधिक उपभोक्ता दर का हवाला देते हुए विकसित देशों से ज्यादा 

जिम्मेदारी उठाने की बात कर रहे है। सचाई तो यह है कि यदि दुनिया के 

लिए एक जैसी उपभोक्ता दर की कल्पना की जाती है तो यह पृथ्वी पर 

अत्यधिक दबाव डालने वाला होगा। दुनिया को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों और 

विज्ञान तथा तकनीक के नवाचार की तरफ अग्रसर होना होगा क्योंकि दुनिया 

विकास की गति से पीछे नहीं हट सकती है। पर्यावरणीय संकट की समस्या 

को सभी  छोटे-बडे़ देशों को समय रहते गंभीरता से लेना होगा और सुरक्षित 

पर्यावरण के मसले को विनाशकारी चुनौती के रूप में ईमानदारी से स्वीकारना 

होगा।...........

                    समाप्त......
         

महिलाओं की सबसे शोषक क्या महिला ही होती है......


पंजाब की कैबिनेट मंत्री बीबी जागीर कौर को अपनी बेटी हरप्रीत कौर को बंधक बनाने, जबरन गर्भपात करवाने और हत्या की साजिश रचने के जुर्म में पांच साल की कैद की सजा मिली है। सीबीआइ की विशेष अदालत ने शुक्रवार को उन्हें यह सजा सुनाई। आपराधिक मामले में संभवत: पहली बार किसी मंत्री को कैद की सजा सुनाई गई है। हत्या के आरोप से बरी करते हुए बीबी पर पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
Bibi Jagir Kaur acquitted in daughter's murder case
अदालत ने बीबी की सहयोगी दलविंदर कौर ढेसी, एएसआइ निशान सिंह और परमजीत सिंह रायपुर को भी पांच-पांच साल की कैद और पांच हजार जुर्माना की सजा दी है। दो अन्य आरोपियों सत्या देवी और हरविंदर कुमार को बरी कर दिया गया। सभी दोषियों को कपूरथला जेल भेज दिया गया। गौरतलब है कि बीबी जागीर कौर की बेटी हरप्रीत कौर उर्फ रोजी की 20 अप्रैल, 2000 की रात संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। 21 अप्रैल को बीबी के पैतृक गांव बेगोवाल में हरप्रीत का अंतिम संस्कार कर दिया गया था। कुछ दिनों बाद बेगोवाल निवासी कमलजीत सिंह ने दावा किया कि वह हरप्रीत का पति है और हरप्रीत गर्भवती थी। 27 अप्रैल को कमलजीत ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर की। हाई कोर्ट ने 9 जून को सीबीआइ जांच का आदेश दिया।
सीबीआइ ने तीन अक्टूबर, 2000 को बीबी जागीर कौर, परमजीत सिंह रायपुर, सत्या देवी, दलविंदर कौर ढेसी, हरविंदर सिंह, संजीव कुमार, डॉ. बलविंदर सिंह सोहल व एएसआइ निशान सिंह के खिलाफ हत्या, जबरन गर्भपात करने और हत्या की साजिश रचने की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था। बाद में दो आरोपियों डॉ.सोहल और संजीव कुमार की सड़क हादसो में मौत हो गई। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी [एसजीपीसी] की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर पंजाब सरकार में इस समय ग्रामीण जलापूर्ति व पेंशनर कल्याण मंत्री हैं।
कब क्या हुआ
-मार्च, 2000: चंडीगढ़ के एक होटल में एसजीपीसी की तत्कालीन अध्यक्ष बीबी जागीर कौर की बेटी हरप्रीत कौर और कमलजीत सिंह की मंगनी हुई।
- 20 अप्रैल, 2000: हरप्रीत कौर की संदिग्ध हालात में मौत।
- 21 अप्रैल, 2000: बीबी के पैतृक गांव बेगोवाल में हरप्रीत का अंतिम संस्कार।
- 27 अप्रैल, 2000: कमलजीत ने हाई कोर्ट में मामले की जांच के लिए याचिका दायर की।
- 9 जून, 2000: हाई कोर्ट ने हरप्रीत कौर हत्या मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी।
- 10 अक्टूबर, 2000: सीबीआइ ने बीबी जागीर कौर, उनकी सहयोगी दलविंदर कौर ढेसी, परमजीत सिंह रायपुर, एएसआइ निशान सिंह, सत्या देवी, हरविंदर सिंह, संजीव कुमार व डॉ. बलविंदर सिंह सोहल के खिलाफ हत्या सहित विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया।
- जनवरी, 2001: पटियाला स्थित विशेष सीबीआइ अदालत में केस का ट्रायल शुरू।
- 30 मार्च, 2012: अदालत ने बीबी जागीर कौर, परमजीत सिंह रायपुर, दलविंदर कौर ढेसी व निशान सिंह को पांच-पांच साल की कैद की सजा सुनाई।
बीबी जागीर कौर ने दिया इस्तीफा!
 कैबिनेट मंत्री बीबी जागीर कौर को जेल भेज जाने के बाद उनके इस्तीफे की चर्चा जोरों पर है। बीबी के करीबी सूत्रों के मुताबिक, गिरफ्तारी के तुरंत बाद जब पटियाला के राजिंदरा अस्पताल में उनका मेडिकल हो रहा था, तब उन्होंने अपना इस्तीफा हस्ताक्षर कर मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के पास भिजवा दिया। चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री आवास व कार्यालय पर संपर्क करने पर कहा जा रहा है कि अभी तक बीबी जागीर कौर का इस्तीफा मुख्यमंत्री को नहीं मिला है। सूत्रों की मानें तो देर रात मुख्यमंत्री बादल बीबी का इस्तीफा स्वीकार कर उसे राज्यपाल के पास भिजवा देंगे।

विकास और पर्यावरण की बातें...... पहला भाग...




दुनिया ने विकास की गति के जिस रफ्तार को पकड़ा है उस रफ्तार से पीछे आना संभव नहीं है।इसलिए 

पर्यावरण और विकास के मौलिक अवधारणा का अंतर्द्वन्द्ध अब स्पष्ट रूप से

सामने है। किसी ने कहा है कि विकास का हर सोपान बर्बरता के नए आयाम को पैदा करता

 है। विकास की यह समझ विकास के मायनों को ही उलट देती है और उसके प्रति

नकारात्मक भाव पैदा करती है। यह गति और समय के नियम के भी खिलाफ है। विकास

की अवधारणा एक सापेक्षिक अवधारणा है। मानव जाति के जीवन स्तर में गुणात्मक

 परिवर्तन ही सही मायने में विकास है। 



दरअसल
, मानव जाति पर्यावरण के जैवमंडल का अटूट हिस्सा है। इन दोनों 


के बीच अंतर्संबंध है, जो एक दूसरे को गहरे तक प्रभावित करने वाला है। 

मनुष्य अपने उत्पत्ति के साथ ही प्रकृति पर निर्भर रहा है परंतु प्रकृति के 

ऊपर यह निर्भरता मौजूदा समय में भयावह रूप ले चुकी है। यह निर्भरता 

अब केवल आवश्यकताओं तक सीमित न रह कर अंधाधुंध विकास की उस 

धारा से जुड़ गई है जो इंसान की अनिवार्य जरूरतों के साथ-साथ व्यवस्था 

जनित आवश्यकताओं से जुड़ी हुई है। विकास की जो धारा बाजारवादी प्रवृत्ति 

की शिकार  और पोषक है वह उत्पाद को लेकर कृत्रिम उपभोक्तावाद पैदा करने 

वाली है। विकास की इस धारा में उत्पादन इंसान की जरूरतों के अलावा 

बाजार के लिए भी केन्द्रीकृत हो चुका है। मांग और आपूर्ति के बाजारवादी 

सिद्धांत ने अंधाधुंध उत्पादन को प्रोत्साहित किया है। उर्जा संबंधी 

आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जारी है। 


वर्तमान में संम्पूर्ण उद्योग धंधों का विस्तार प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित 

र्इंधनों पर टिका है। विकास के इस मॉडल के कारण दुनिया के सामने ग्लोबल 


वार्मिंग की समस्या खड़ी हो गई है। पृथ्वी इतनी गर्म हो गई है जितनी 

पहले कभी नहीं थी। ग्लेशियर और ध्रुवों पर मौजूद बर्फ पिघल रही है। नई 

औद्योगिक परियोजनाओं के लिए जंगलों को काटा जा रहा है। औद्योगीकरण 

की वर्तमान प्रक्रिया के पूर्व भी कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए 

सदियों से वनों को काटा जाता रहा है लेकिन अब यह कटान खतरनाक स्तर 

पर पहुंच गई है। इससे साबित होता है कि इंसान की प्रकृति पर किसी भी 

तरह से निर्भरता उसे नकारात्मक रूप में प्रभावित करने वाली है।