गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

कैसा लोकतन्त्र कैसा निवेश


कैसा लोकतन्त्र कैसा निवेश
    

     कहते है कि लोकतन्त्र की जडें भारत में गहरी हैं। शायद इन्ही जडों में अब भ्रष्टाचार रुपी दीमक लग चुका है। तभी तो विगत   कुछ वर्षो में विकास कुछ चन्द शहरों तक सिमट कर रह गया है। निवेश भी अब अमेरिका , सिगांपुर , यूरोपीय देशों का रुख कर चुका है। लोकतन्त्र में भ्रष्टाचारियों ने ऐसी साख बनायी है कि आम आदमी तो डरे ही थे ,अब उद्योगपति भी सहम गये हैं। गोदरेज समुह के चेयरमैन जमशेद गोदरेज का कहना कि यदि आप ईमानदार व्यवसायी है तो भारत में शुरु करना बडी दिक्कत की बात है। इस बात को पुख्ता करते है कि कि क्यों निवेशक भारत से मुँह मोड़ रहे है । व्यवसाय की अनूकुलता के लिए पारदर्शिता को अनिवार्य माना जाता है। भारत में भ्रष्टाचार ,घुसखोरी ने ईमानदारी को सोख लिया है । लालफिताशाही और लोकतन्त्र के पैरोकार नेता सशक्त लोकपाल ना लाकर इसे सिंचने का कार्य कर रहे हैं। अच्छे निवेश के लिए पारदर्शी शासन बहुत जरुरी है। नहीं तो हमारी 2020 तक विकसित भारत कल्पना ही रह जायेगी।   

रविवार, 25 दिसंबर 2011

विशिष्टता का प्रतीक आई.आई.एम.सी.


विशिष्टता का प्रतीक आई.आई.एम.सी.

भारतीय जनसंचार संस्थान (आई.आई.एम.सी.) का नाम आते ही कुछ हंसते- हंसते चेहेरे सामने आते हैं। जो कुछ कर गुजरने की हसरत लिए आते हैं।यहाँ आने के बाद मस्ती के साथ काम का दबाव विद्यार्थियों के व्यक्तित्व को निखारता है। 

     17 अगस्त 1965 को इस संस्थान की नीव रखी रखी गई थी तो इसका मूल उद्देश्य था भारत में लोगों को संचार क्रान्ति से अवगत कराना। आज 46 सालों में एसे ही कई संस्थानों के कारण भारत में विचारों की स्वतंत्रता को नयी पहचान मिली है। इस संस्थान की बदौलत ही देश को महान पत्रकार मिले है जिन्होने अपनी एक अलग पहचान बनायी है।
भारतीय जन संचार संस्थान का मुख्य उद्देश्य छात्रों को प्रशिक्षण देना है ताकि वो नये जमाने की पत्रकारिता के लिये तैयार रहें,और टी वी और कप्यूटर जैसे तकनीकी माध्यम से लोगों को सूचना पहुंचाये।संस्थान में हर तरह की पत्रकारिता पढ़ायी जाती है।साथ ही पत्रकारिता के छात्रों को भी विज्ञापन और संचार पढ़ाया जाता है।जिससे उनका सतत विकास हो और वो मीड़िया के हर पहलू से भी वाकिफ हों।

   कई मामलों में आई.आई.एम.सी. मीडिया के अन्य संस्थानो से अलग है। यहाँ  विकासशील देशों के श्रमजीवी पत्रकारों के प्रशिक्षण के साथ भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों को भी प्रशिक्षित किया जाता है।
     
डॉ. आनंद प्रधान ,शिवाजी सरकार, और डॉ.जेठमलानी के मार्गदर्शन के साथ विजटिंग फैकल्टी जैसे प्रदीप सौरब ,जगदीश यादव इत्यादि के सानिध्य में सभी छात्रों और छात्राओं का सर्वांगीण विकास होता है।
यहाँ के विद्यार्थियों का अपना अन्दाज़ भी अलग होता है। चाहे पढ़ने का हो या मस्ती का वे सबमें आगे होते हैं। पढ़ने के समय मन लगाकर पढ़ते है चाहे थ्यौरी की कक्षा हो या लेआउट की ,रिपोर्ट बनाने की .....।इसी तरह वे हर तरह के कार्यक्रम में बढ़-चढ़ के भाग लेते हैं। यही सब कारण है कि भारतीय जन संचार संस्थान भारत के सर्वोच्च मीडिया संस्थान है।




भाषा का क्रियोलिकरण..



  भाषा का क्रियोलीकरण दरअसल उस  प्रक्रिया को कहते है ,जिसकी मार हमारे समाज के संदर्भ में इन दिनों सबसे ज्यादा भारतीय भाषाओं और हिंदी को झेलनी पड़ रही है. हमारे अखबारों में धीरे-धीरे बिल्कुल आमफहम हिंदी शब्दों की जगह उनके अंग्रेजी अनुवादों के इस्तेमाल का फैशन चल पड़ा है, हमारे टीवी चैनलों में देवनागरी के बीच बहुत धड़ल्ले से रोमन लिपि की घुसपैठ बढ़ रही है, हमारी पूरी शब्दावली में सरोकार और विचार को बेदखल  करके, किसी तर्क-पद्धति और प्रक्रिया की पूरी तरह उपेक्षा करके सिर्फ सनसनी बेचने और कारोबार करने की नीयत सक्रिय दिखाई पड़ती है |

  भाषा का क्रियोलीकरण दरअसल इसलिए भी खतरनाक है कि वह भाषा को उसके मूल अर्थों में भाषा नहीं रहने देता, वह उसे बस एक तकनीक में बदल डालता है जिसके जरिए आप अपनी इच्छा या राय- अगर कोई अपनी इच्छा या राय हो तो- दूसरों तक पहुंचा सकें. इसीलिए न उसमें व्याकरण का अनुशासन चाहिए और न लिपि की अपरिहार्यता. ऐसी भाषा बोलने और बरतने वाले लोग धीरे-धीरे अपनी बौद्धिक स्वतंत्रता से भी वंचित होते जाते हैं, और उन्हें पता भी नहीं चलता. वे बस एक दिया हुआ काम दिए हुए वेतन पर करते हैं और दी हुई खुशी पर निसार होकर जीवन जीते रहते हैं.
 क्रियोलीकरण इस बौद्धिक गुलामी का पहला क़दम है जिसका प्रतिरोध जरूरी है ताकि हम सोचने-समझने वाली जमात के तौर पर बचे रह सकें जहां गुड मार्निंग से सूर्योदय होता हो, गुड इवनिंग से सूर्यास्त। निशा की गोद में सोया-सोया इंसान बुदबुदाता हो गुड नाईट-गुड नाईट। किसी के पैर पर पैर पड़ जाये तो सॉरीगुस्सा आने पर नॉनसेंस, गेट आऊट, इडियट आदि-आदि की ध्वनि  मुख से बार बार निकलती हो ।
 समाचार पत्रों में ही नहीं वरन् संसद में विचार व्यक्त करने के लिये आज भी धड़ल्ले से अंग्रेजी का प्रयोग हो रहा हो । हिन्दी के आवेदन पत्र पर अंग्रेजी में ही अपनी राय , विचार लिखने की परम्परा हावी हो। अंग्रेजी बोलने वालों को तेज तरार , बुद्धिमान एवं प्रतिष्ठित समझने एवं हिन्दी बोलने वालों को अनपढ़ ,गवार जानने के परम्परा हावी हो। अंग्रेजी विद्यालय में बच्चों को शिक्षा के लिये भेजना शान शौकत बन चुका हो, तो कैसे कोई कह सकता है, यह वही  देश हैं जिस देश की 90 प्रतिशत जनता हिन्दी जानती समझती एवं बोलती है। जिस देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी है।

मेरी पहली रिपोर्ट..........


  भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जनचेतना यात्रा के समापन के अवसर पर में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि कांग्रेसनीत सरकार की साख उसके प्रधानमंत्री थे, पर भ्रष्टाचार के कारण यह साख मिट्टी में मिल गई है।
   दो दिन बाद 22 नवंबर से संसद सत्र शुरू हो रहा है और भाजपा यात्रा के मुद्दे से संसद को भी गरमाने की तैयारी में है इसीलिए सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए राजग के सांसदों की तरफ से विदेश में अवैध खाता व अवैध संपत्ति न होने का घोषणा पत्र देने का एलान कर दिया।
  समापन सभा में आडवाणी के तेवर तो तीखे थे ही, उनके साथ भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली व राजग संयोजक शरद यादव ने भी सरकार पर हल्ला बोला।
  गडकरी ने मनमोहन सिंह को मजबूर व लाचार बताकर उनपर तरस जताया। उन्होंने सोनिया गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि सरकार में सिर्फ लक्ष्मी दर्शन चल रहा है। एक नारा सा बन गया है कि जात पर न पात पर सोनिया जी की बात पर देश को लूटो। अरुण जेटली ने कहा इस सरकार की साख तो बची ही नहीं है, नेतृत्व का संकट भी खड़ा हो गया है।
 सुषमा स्वराज ने कहा उन्होंने संसद में प्रधानमंत्री से एक शेर के जरिये सवाल किया था, जिसका जवाब उन्होंने एक बेतुके शेर से दिया था। अब वह प्रधानमंत्री पर एक और शेर पढ़ रही हैं कि मैं बताऊं तेरा काफिला क्यों लुटा, क्योंकि तेरा रहजनों (लुटेरों ) से वास्ता था। 

अपने को विकल्प साबित करने की रणनीतिक भूल





 अपने को विकल्प साबित करने की रणनीतिक भूल

  विचारधारा से समझौतों, निजी जीवन में स्खलित होते आदर्श और पैसे की पिपासा ने भाजपा को एक अंतहीन मार्ग पर छोड़ दिया है। सवाल नेतृत्व का और भावी प्रधानमंत्री का भी है। आडवाणी ने रथयात्रा इसी उद्देश्य से आरम्भ किया लेकिन ये कलह को बढ़ाने वाली साबित हुई । भ्रष्टाचार, महंगाई, के मोर्चे पर कठघरे में खड़ी इस सरकार के बाद भाजपा के अलावा और दूसरा है भी नहीं, लेकिन क्या भाजपा लोगों की अपेक्षाओं पर खरी उतर रही है? 
 भाजपा आज भी देश का दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। 1952 से लेकर आज तक की उसकी राजनीतिक यात्रा में ऐसी बदहवासी कभी नहीं देखी गई। जनसंघ और फिर भाजपा के रूप में उसकी यात्रा ने एक लंबा सफर तय किया है।
भाजपा को केवल वर्तमान चुनौतियों से निपटने योग्य ही नहीं, बल्कि कांग्रेस से अलग, सक्षम और एकजुट नेतृत्व वाली पार्टी दिखनी चाहिए।इसी क्रम में लालकृष्ण आडवाणी की 20 नवंबर तक चलने वाली जनचेतना को लिया जा सकता है। चूंकि यह सरकार के विरुद्ध देशव्यापी जनजागरण कार्यक्रम है इसलिए सत्तारूढ़ पार्टी को परास्त करने के लिए ध्यान इस पर होना चाहिए था कि इस यात्रा का अधिकतम राजनीतिक लाभ कैसे उठाया जाए?
 इसमें सर्वप्रमुख नीति यही होनी चाहिए कि इसे सबसे ज्यादा प्रचार मिले और सारी चर्चा को इस पर केंद्रित रखा जाता, लेकिन इसके लिए पार्टी में शीर्ष से लेकर नीचे तक एकजुटता जरूरी है जिसका फिलहाल अभाव दिख रहा है। कुछ वर्ष पूर्व आडवाणी की यात्राओं के दौरान पूरी पार्टी एक साथ दिखती थी और देश का पूरा ध्यान इस ओर खींचने की रणनीति होती थी। इस बार भी हालांकि सिताबदियारा से आरंभ यात्रा में भाजपा के कई प्रमुख केंद्रीय नेता इसमें शामिल हुए पर सच यह है कि आज पार्टी के अंदर मुख्य ध्यान और चर्चा आडवाणी की यात्रा नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी और विवादों का चोली-दामन का साथ है।ये यात्रा में भी दिखाई पडा।येद्दयुरप्पा की गिरफ्तारी जैसी घटनाएं उनकी यात्रा की आभा ही मलिन नहीं कर रहे हैं, बल्कि पार्टी के दूसरे नेताओं के बयानों और कार्यक्रमों से भी इसकी महत्ता घट रही है।
 यात्रा आरंभ होने के पूर्व सितंबर महीने के उत्तरार्ध में मुख्य चर्चा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का उपवास रही। पार्टी की दुर्दशा यह रही कि दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी आडवाणी की यात्रा मुख्य विषय नहीं बनी। वहां अनुपस्थित रहकर नरेंद्र मोदी ही लोगों की अभिरुचि का विषय बने। उसके बाद मोदी के दस वर्षीय कार्यकाल की उपलब्धियां आ गईं।ठीक यात्रा के दिन मोदी का ब्लॉग आ गया आडवाणी की प्रशंसा एवं यात्रा के समर्थन में। यह स्थिति केवल मोदी तक सीमित नहीं। अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कार्यकारिणी के ठीक पहले पत्रकार सम्मेलन में जनचेतना यात्रा का विवरण देकर यह संदेश देने की कोशिश की कि यह पार्टी द्वारा निर्धारित शीर्ष नेतृत्व का निर्णय है। इसमें भी इसे मुख्य फोकस बनाने की रणनीति ओझल थी।
 इसके अलावा उत्तर प्रदेश में आडवाणी की यात्रा का सघन कार्यक्रम होना चाहिए था पर वाराणसी से उनकी यात्रा मध्य प्रदेश मोड़ दी गई। उनके समानांतर उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह एवं कलराज मिश्र के नेतृत्व में दो अलग यात्राएं चल रहीं हैं। इसके पीछे तर्क है कि प्रदेश चुनाव के कारण ये यात्राएं आवश्यक थीं, क्योंकि यदि चुनाव आयोग ने फरवरी में चुनाव घोषित कर दिया तो यह कार्यक्रम संभव नहीं हो पाता। क्या आडवाणी की यात्रा को केंद्र एवं प्रदेश सरकार के खिलाफ नहीं किया जा सकता था? इससे आम नागरिकों और भाजपा कार्यकर्ताओं में गलत संदेश गया। साफ है कि उत्तर प्रदेश में आडवाणी की यात्रा को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया और यह लोगों की दृष्टि से छिपी नहीं है। अपने ही राजनीतिक लाभ को पर्याप्त महत्व न देने की ऐसी कोशिशों को किस नजर से देखा जाए? गडकरी द्वारा यात्रा का पूरा विवरण देते समय ही साफ हो गया था कि आडवाणी भले इसे काफी महत्व दे रहे हों, लेकिन पार्टी नेतृत्व केवल औपचारिकता पूरा कर रही है।
सच यह है कि घोषणा करने के पूर्व आडवाणी अपने साथियों से इस पर चर्चा कर चुके थे, लेकिन जब नेताओं का मुख्य फोकस अपना पद, अपना कद और अपनी अहमियत बनाए रखना हो तो फिर ऐसे किसी कार्यक्रम के लिए आवश्यक एकजुटता कहां से आती। यात्रा के लिए उपयुक्त माहौल बनाने की राष्ट्रीय कोशिशें बिल्कुल नदारद हैं। ऐसे में यात्रा के अपेक्षित फलितार्थ को हासिल करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? निश्चित ही यह कोई अच्छी बात नहीं कही जा सकती।


शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

politics of GANDHI TEMPLE in GUJARAT

कयास लगाने का मन करता है कि नरेंद्र मोदी गांधी मंदिर के बारे में कब से सोचने लगे। मोदी यह कह सकते हैं कि वो तो हमेशा से सत्य और अहिंसा की राह पर चलते रहे हैं। गांधी के दम पर ही तो वो गोधरा से अहमबदाबाद की राह पर चले होंगे। अपने राजनीतिक सत्य को तलाशने। जिस महात्मा का मंदिर चंद हज़ार रुपये में बन सकता है,उस पर एक सौ बत्तीस करोड़ का खर्चा। एक अरब से ज्यादा का मंदिर। फकीर महात्मा का मंदिर अरबपति लगेगा। लगेगा कि हां,गुजरात ने कोई रईस पैदा किया था। दीवारों पर चिपकी गांधी की मूर्तियां और उनके पीछ चलते दस पांच लोगों की प्रतिमाएं कौन सी गांधी कथा कहने वाली हैं। सरकारी अफसर पांच लाइन की एक कथा चिपका देंगे।

things about janlokpal

hai juda raste ab hamre tumhare,
ho jaise nadi ke alag do kinare.
tum andolan krte rho he "anna'
hum bate karte rhege ki sansad badhi hai.