रविवार, 25 दिसंबर 2011

विशिष्टता का प्रतीक आई.आई.एम.सी.


विशिष्टता का प्रतीक आई.आई.एम.सी.

भारतीय जनसंचार संस्थान (आई.आई.एम.सी.) का नाम आते ही कुछ हंसते- हंसते चेहेरे सामने आते हैं। जो कुछ कर गुजरने की हसरत लिए आते हैं।यहाँ आने के बाद मस्ती के साथ काम का दबाव विद्यार्थियों के व्यक्तित्व को निखारता है। 

     17 अगस्त 1965 को इस संस्थान की नीव रखी रखी गई थी तो इसका मूल उद्देश्य था भारत में लोगों को संचार क्रान्ति से अवगत कराना। आज 46 सालों में एसे ही कई संस्थानों के कारण भारत में विचारों की स्वतंत्रता को नयी पहचान मिली है। इस संस्थान की बदौलत ही देश को महान पत्रकार मिले है जिन्होने अपनी एक अलग पहचान बनायी है।
भारतीय जन संचार संस्थान का मुख्य उद्देश्य छात्रों को प्रशिक्षण देना है ताकि वो नये जमाने की पत्रकारिता के लिये तैयार रहें,और टी वी और कप्यूटर जैसे तकनीकी माध्यम से लोगों को सूचना पहुंचाये।संस्थान में हर तरह की पत्रकारिता पढ़ायी जाती है।साथ ही पत्रकारिता के छात्रों को भी विज्ञापन और संचार पढ़ाया जाता है।जिससे उनका सतत विकास हो और वो मीड़िया के हर पहलू से भी वाकिफ हों।

   कई मामलों में आई.आई.एम.सी. मीडिया के अन्य संस्थानो से अलग है। यहाँ  विकासशील देशों के श्रमजीवी पत्रकारों के प्रशिक्षण के साथ भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों को भी प्रशिक्षित किया जाता है।
     
डॉ. आनंद प्रधान ,शिवाजी सरकार, और डॉ.जेठमलानी के मार्गदर्शन के साथ विजटिंग फैकल्टी जैसे प्रदीप सौरब ,जगदीश यादव इत्यादि के सानिध्य में सभी छात्रों और छात्राओं का सर्वांगीण विकास होता है।
यहाँ के विद्यार्थियों का अपना अन्दाज़ भी अलग होता है। चाहे पढ़ने का हो या मस्ती का वे सबमें आगे होते हैं। पढ़ने के समय मन लगाकर पढ़ते है चाहे थ्यौरी की कक्षा हो या लेआउट की ,रिपोर्ट बनाने की .....।इसी तरह वे हर तरह के कार्यक्रम में बढ़-चढ़ के भाग लेते हैं। यही सब कारण है कि भारतीय जन संचार संस्थान भारत के सर्वोच्च मीडिया संस्थान है।




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