कयास लगाने का मन करता है कि नरेंद्र मोदी गांधी मंदिर के बारे में कब से सोचने लगे। मोदी यह कह सकते हैं कि वो तो हमेशा से सत्य और अहिंसा की राह पर चलते रहे हैं। गांधी के दम पर ही तो वो गोधरा से अहमबदाबाद की राह पर चले होंगे। अपने राजनीतिक सत्य को तलाशने। जिस महात्मा का मंदिर चंद हज़ार रुपये में बन सकता है,उस पर एक सौ बत्तीस करोड़ का खर्चा। एक अरब से ज्यादा का मंदिर। फकीर महात्मा का मंदिर अरबपति लगेगा। लगेगा कि हां,गुजरात ने कोई रईस पैदा किया था। दीवारों पर चिपकी गांधी की मूर्तियां और उनके पीछ चलते दस पांच लोगों की प्रतिमाएं कौन सी गांधी कथा कहने वाली हैं। सरकारी अफसर पांच लाइन की एक कथा चिपका देंगे।
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