![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJ8M-6avRqiWD-umBgjrwYt8uvVyqGa3F25pUUslMM9ARbCV9MbxIp7XyfcSwNBaVOw5tUB-bwTR0UH7wLlte4fQ0KCuqcWl_CflCCO6tjMMJq6OfaCgDQWZwsxzEF309C5QHyb-idQh0/s1600/flags.jpg)
मोदी सरकार को ना केवल अपने अतीत के गलतियों को दोहराने
से बचना चाहिये बल्कि विदेशी देशों के साथ भी सम्बन्ध वास्तविकता के धरातल पर
निर्धारित करना चाहिये। अगर आप चाहे भी तो एक साथ सभी देशों को खुश नहीं कर सकते।
कुछ विस्तारवादी है तो कुछ का अपने पड़ोसियो के साथ ऐसी अनबन है कि अगर उनके
राष्ट्राध्यक्ष व्यक्तिगत चाहे भी तो जनभावना के कारण दूसरी सरकार से सम्बन्ध सहज
नहीं कर सकते।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmzqln1F1gcdQXYLPdPNBfKDLLuTg2Kx8EufWgGZXEhQo3tYnhtlHK0eADz2KWgwrSU4IY-kb01WY4ef2UGluEIvF08E6m0GBSqP4W_MueD-BTlHumczEqgA6tcBgpjCPOPiwnJIZ1cQQ/s1600/un.jpg)
आज की वास्तविकता ये है कि भारत का बढ़ता मध्यवर्ग विश्व की बड़ी वहुराष्ट्रीय
कम्पनियों के लिए सबसे बड़ा बाजार है। अमेरिका सहित यूरोपीय देश लगातार हमारी ओर
इसी लिए मित्रता का हाथ बढ़ा रहे है।
हमें इनके नापाक इरादों का अन्दाज़ा इसी बात
से करना चाहिये कि तेल के कारण इन्हे लीबिया मे मानवाधिकार का हनन दिखाई पड़ता है
लेकिन सोमालिया पर ये आँख मूद लेते है। समकालीन विश्व की ज्यादातर समस्याये
अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की संसाधन के प्रति ज्यादा लोलुपता के कारण उत्पन्न
हुई है। इसको ये समय समय पर विभिन्न नाम देते रहे है। 1980 के पहले जब वैश्विक
संचार पर इन्ही विकसित देशों को एकाधिकार था जिसे यूनेस्को द्वारा गठित मैकब्राइड
कमीशन ने पुष्टि की तो अमेरिका ने मानने से इनकार कर दिया। साथ ही मानवाधिकार पर
अपने दोहरे रवैये पर देशों के साथ सम्बन्ध निर्धारित करने लगा।![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNA-1mIHULSLKg_98tgm0oimkCekGoVbhCX9O-HVjVDCL4UmqwMSSel88TFlCBtrw9_wme0PIrObadn1xcxeLitCU7eZskn_9o71LScTls8EMfYFICf-bzQPiRN0RrA3wE0Gl-YCOGxTk/s1600/s_china_sea-nations.gif)