शनिवार, 29 दिसंबर 2012

चारित्रिक दोष के युग में ,पाक साफ पत्रकार

सामाजिक असन्तोष अपने आकार को बढ़ा रहे है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि अपने जिम्मेदारी का वहन कौन कर रहा है। जहाँ बढ़ते नगरीकरण ने सामाजिक तोन बाने को नया रुप दिया है। वही एकल परिवार की बढ़ती संख्या ने पारिवारिक सुरक्षा की भावना को घटाया है।याद रखें हम सभ्यता के संक्रमणकालीन दौर में है।ना तो हम जड़ो से पुरी तरह अलग हो पाये है ना तो पुरी तरह से आधुनिक। यही कारण है कि हमारे यहाँ पिज्जा की डिलवरी तो टाइम पर हो जाती है लेकिन ऐम्बुलेन्स और पुलिस घटाना के बाद ही पहुचते हैं।
अगर आप समस्या देखें तो हर ओर नज़र आयेगी।किसान से लेकर प्रधानमंत्री तक। हमने लोकतन्त्र को अपनाया लेकिन सही तरीके से लागु ना कर पाये। ज्यादातर लोग अपने काम के बजाय दुसरे लोगों के काम को करना ज्यादा पसन्द करते है। हरामखोरी के हम आदी होते जा रहे। प्राइमरी अध्यापक से लेकर प्रोफेसर तक पढ़ने के बजाय नेतागिरी में ज्यादा समय देते है। प्रतिष्ठा और महत्वाकाक्षां अच्छी बात है लेकिन जब ये समाज के हित मे ना हो तो नैतिक रुप से सही नही। यही हाल हमारे विधायिका का है, जिन्हें कानुन बनाने का दायित्व सौपा गया था। वो रोड बनाने और हैण्डपम्प लगवाने में ज्यादा रुचि लेते है। कार्यपालिका का कार्य कानून लागू करवाना था तो वह नेताओं के हाथों की कठकुतली बन कर रह गया है। यही कारण है कि जब सरकारे बदलती है तो वही कानून होने के बावजुद व्यवस्था की दशा और दिशा दोनों बदल जाती है।
न्याय के मन्दिर का कहना ही क्या। तीन करोड़ से ज्यादा मामले न्याय के लिए इन्तजार कर रहे है। आम आदमी अब जाये भी तो कहाँ जाय।बचा भी तो एक मीडियी। बिका हुआ। मालिको के हितो का संरक्षक।टीआरपी की अन्धी दौड़ में भटका। आज मध्यवर्गीय लोगों की स्थिति बीच सड़क पर भागते उस कुत्ते की तरह है जो एक गाड़ी से तो बच जाता है। लेकिन जैसे ही वह इसकी खुशी मना पाता की दुसरी आर की गाड़ी का धक्का ..।और सब खतम।
इन्जिनियर, ठेकेदार, आडिटर, व्यापारी इत्यादि लोग कमीशनबाजी में ऐसे खोगये है कि उन्हे एहसास ही नहीं है। भौतिकता की अन्धी दौड़ जारी है। लोग चमक में ऐसे खोये है कि नैतिकता की खिसकती ज़मीन का अन्दाज़ा ही नहीं है। पत्रकार,डाक्टर, सेना,साहित्यकार इसरो इत्यादि में काम कर रहे लोग हैं, जो शायद अपने काम को कुछ ईमानदारी से कर रहे है।हाँला कि कुछ बदमाश इन पेशे में भी है।आनुपातिक दृष्टि से कम है।  तभी हमारा देश अभी रहने लायक है। आवश्यक है कि समाज मे अपने काम को ईमानदारी से करने की प्रवृत्ति विकसित हो।

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