एडीटर्स गिल्ड ने अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग के लिए दिशानिर्देश तय करने का विरोध किया है। एडीटर्स गिल्ड की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि अगर रिपोर्टिग पर कुछ समय के लिए भी रोक लगाई जाती है तो उससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है। एडीटर्स गिल्ड की ओर से ये दलीलें गुरुवार को अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग के लिए दिशानिर्देश तय करने पर चल रही सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष दी गई।
एडीटर्स गिल्ड के वकील राजीव धवन ने प्रेस की स्वतंत्रता पर जोर देते हुए कहा कि संविधान में तीन 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 14 (कानून के समक्ष समानता) और 21 (जीवन का अधिकार) महत्वपूर्ण अनुच्छेद हैं। ये मौलिक अधिकार है और इनमें सबसे महत्वपूर्ण है अनुच्छेद 19 जो हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसी पर लोकतंत्र निर्भर है। अगर अनुच्छेद 19 को हटा दिया गया तो लोकतंत्र खतम हो जाएगा। धवन ने अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग पर कुछ समय के लिए भी रोक लगाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि कोर्ट, रिपोर्टिग के बारे में दिशानिर्देश नहीं तय कर सकता। सामान्य कानूनों के तहत अदालत के पास न्यायिक कार्यवाही के प्रकाशन को स्थगित करने की शक्ति नहीं है और कानून में अगर कोई रिक्ति है तो इसके आधार पर किसी व्यक्ति के अधिकारों पर रोक नहीं लगाई जा सकती। धवन ने कहा कि भारत के संविधान के दो भाग हैं एक राजनीतिक और दूसरा न्याय। राजनीतिक भाग की संरक्षक संसद है जबकि न्याय की संरक्षक अदालत है। उन्होंने कहा कि यह अदालत हमेशा से लोकतंत्र लागू करती रही है, इसीलिए अनुच्छेद 19 (1)(ए) महत्वपूर्ण है।
पीठ ने धवन से पूछा, हम यह जानना चाहते हैं कि अगर किसी आरोपी को अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का हनन हो रहा है तो क्या हमें कार्यवाही का इंतजार करना चाहिए या हम अधिकारों के हनन का प्रथम चरण में ही समाधान कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह स्थगन के विचार पर बहस कर रही थी क्योंकि अदालत की कार्यवाहियों की रिपोर्टिग करने के लिए कोई कानून नहीं है और अगर कानून के माध्यम से स्थगन के अधिकार का ख्याल रखा जाता है तो दिशानिर्देश की जरूरत नहीं पड़ेगी। उल्लेखनीय है कि अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग के संबंध में कई वकीलों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर उचित दिशा-निर्देश जारी करने की गुजारिश की थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई शुरू की है। मीडिया के हलकों में इसको लेकर चिंता जताई जा रही है कि इससे मीडिया की स्वतंत्रता का हनन न हो जाए।
thanks to dainik jagran.....
एडीटर्स गिल्ड के वकील राजीव धवन ने प्रेस की स्वतंत्रता पर जोर देते हुए कहा कि संविधान में तीन 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 14 (कानून के समक्ष समानता) और 21 (जीवन का अधिकार) महत्वपूर्ण अनुच्छेद हैं। ये मौलिक अधिकार है और इनमें सबसे महत्वपूर्ण है अनुच्छेद 19 जो हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसी पर लोकतंत्र निर्भर है। अगर अनुच्छेद 19 को हटा दिया गया तो लोकतंत्र खतम हो जाएगा। धवन ने अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग पर कुछ समय के लिए भी रोक लगाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि कोर्ट, रिपोर्टिग के बारे में दिशानिर्देश नहीं तय कर सकता। सामान्य कानूनों के तहत अदालत के पास न्यायिक कार्यवाही के प्रकाशन को स्थगित करने की शक्ति नहीं है और कानून में अगर कोई रिक्ति है तो इसके आधार पर किसी व्यक्ति के अधिकारों पर रोक नहीं लगाई जा सकती। धवन ने कहा कि भारत के संविधान के दो भाग हैं एक राजनीतिक और दूसरा न्याय। राजनीतिक भाग की संरक्षक संसद है जबकि न्याय की संरक्षक अदालत है। उन्होंने कहा कि यह अदालत हमेशा से लोकतंत्र लागू करती रही है, इसीलिए अनुच्छेद 19 (1)(ए) महत्वपूर्ण है।
पीठ ने धवन से पूछा, हम यह जानना चाहते हैं कि अगर किसी आरोपी को अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का हनन हो रहा है तो क्या हमें कार्यवाही का इंतजार करना चाहिए या हम अधिकारों के हनन का प्रथम चरण में ही समाधान कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह स्थगन के विचार पर बहस कर रही थी क्योंकि अदालत की कार्यवाहियों की रिपोर्टिग करने के लिए कोई कानून नहीं है और अगर कानून के माध्यम से स्थगन के अधिकार का ख्याल रखा जाता है तो दिशानिर्देश की जरूरत नहीं पड़ेगी। उल्लेखनीय है कि अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग के संबंध में कई वकीलों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर उचित दिशा-निर्देश जारी करने की गुजारिश की थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई शुरू की है। मीडिया के हलकों में इसको लेकर चिंता जताई जा रही है कि इससे मीडिया की स्वतंत्रता का हनन न हो जाए।
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